Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-28)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-



इतना पढ़ने के बाद शास्त्री जी थोड़ा रुक गये क्योंकि उन्हें नयना की भाव भंगिमा कुछ अजीब सी लग रही थी।ऐसे लग रहा था जैसे वो बहुत तेज गुस्से मे हो। शास्त्री जी ने भूषण प्रसाद की ओर इशारा किया कि आप बेटी को सम्हालो।  जब भूषण प्रसाद ने नयना की तरफ देखा तो मुस्कुरा उठे फिर बोले,"शास्त्री जी ये बचपन से ऐसी ही है । कोई भी लड़की राज के आसपास आ जाए तो इसे बर्दाश्त नहीं है जब ही मैं इसे कुछ नहीं बता रहा था खामखां ऐसे ही परेशान हो जाती है पर आज तो इसने जिद बांध ली थी कि मैं भी उस तहखाने का रहस्य जानकर रहूंगी जिसके कारण उसका दोस्त राज खोया खोया सा रहने लगा है ।"


शास्त्री जी ने समय देखा शाम होने वाली थी  फिर भूषण प्रसाद ने जो बात बतायी थी कि उसके माली की बेटी अक्सर नींद में चलती है और वह स्वयं को चंद्रिका और राज को देव कहती हैं । इसलिए शास्त्री जी को ये महसूस है रहा था कि ये इन दोनों का पुनर्जन्म है । इनके सुशुप्त मस्तिष्क मे अभी भी पिछले जन्म की यादें हैं तभी दोनों एक गहरी निद्रा की अवस्था में पिछला सब कुछ याद कर वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं ।पिछले जन्म में राज ही देवदत्त था तब वह मूर्तिकार था लेकिन अब वो चित्रकार और डाक्टर है ।परी भी पिछले जन्म में कुशल  नृत्यांगना थी तो इस जन्म में भी नाटकों में भाग लेती है । इसलिए शास्त्री जी ने कहा ," अब मैं चलता हूं ।देखो ये बात आपके माली की लड़की के जीवन से भी जुड़ी है इसलिए कर आप उनको भी बुला लाना हो सकता है कल सारे राज पर से पर्दा हट जाए।"


यह कहकर शास्त्री जी तो चले गये पर सब के दिमाग़ में ढेर सारे प्रश्न छोड़ गये कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ होगा उन दोनों के साथ जिसके कारण उन दोनों के नरकंकाल तहखाने में पड़े मिले। ये दोनों तो भाग जाने की तैयारी कर रहे थे । क्या राजा वीरभान ने उनको पकड़ लिया था । लेकिन खंजर जिस तरीके से उन दोनों की पीठ पर लगा था उससे तो ऐसा लगता था कि किसी ने पीठ पीछे वार किया है।


सभी अपने अपने तरीके से सोच रहे थे ।नयना रात के खाने की तैयारी में जुट गयी‌। आज उसका खाना बनाने का मन नहीं कर रहा था ।उसने झटपट सब्जी बनाई और रोटी बाहर से मंगवा ली ।सभी ने थोड़ा बहुत खाया और अपने अपने कमरे में चले गये।


राज अपने कमरे में गया तो उसे कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा था इसलिए वह ताजी हवा खाने बग़ीचे में चला गया।वहीं बैंच पर बैठे बैठे सोचने लगा कि नयना को कितना बुरा लग रहा होगा जब वह यह सुनती होगी कि मैं किसी और से प्रेम करता था।पर…….. क्या वास्तव में मैं नयना से प्यार करता हूं …..शायद नहीं , मैंने कभी भी नयना में अपना जीवन साथी नहीं चाह वह हमेशा मेरे लिए दोस्त से बढ़कर है पर जीवन साथी नहीं……शायद…. शायद मैं परी को चाहने लगा हूं ‌"

राज ने अपना मन टटोला। वास्तव में वह परी को  चाहने लगा था एक कशिश सी थी उसकी आंखों में जो राज को अपनी ओर खींचती थी ।उसका मासूम चेहरा ,भोली सी मुस्कुराहट ओफह कोई भी फिदा हो सकता था परी के हुस्न पर ।तभी चम्पा उसे कहीं अकेले जाने नहीं देती थी। जहां वो पहले रहते थे उस गांव में एक नाटक मंडली आई थी ।परी ने बड़ी जिद करती अपनी मां से कि वह भी उस नाटक मंडली में अभिनय करने जाएंगी लेकिन चम्पा हमेशा मना करती थी जवान लड़की ऊपर से हद से ज्यादा सुंदर उसे ये डर सता रहता था कि कहीं परी को बहला फुसलाकर कर कोई ग़लत काम ने कर दे।पर किशनलाल हमेशा से उसे निडर बनने की कहता था ।


बग़ीचे में बैठे बैठे उसे याद आया कि शास्त्री जी ने कहा था कि कल माली किशनलाल का परिवार भी कोठी पर होना चाहिए तो क्यों ना अभी जाकर उसे कह दिया जाए। कि कल वो कोठी पर आ जाए अपने परिवार के साथ इसी बहाने परी से भी मुलाकात हो जाएंगी।


वह चुपचाप किशनलाल के घर की ओर चल दिया।उसे ये तो पता था गांव के आखिरी छोर पर चार पांच कच्चे घर है उन में से एक किशनलाल का घर है लेकिन कौनसा है ये पता नहीं था इसलिए उसने एक व्यक्ति से पूछा,"भाई किशनलाल जी कहां रहते हैं जो माली का काम करते हैं ।"


"अरे साहब आप किशनू के बारे में तो नहीं पूछ रहे चम्पा जीजी के घरवाले। हां साहब वो सामने उस घर में रहते हैं । हमारे गांव के जमाई है । बड़े अच्छे आदमी हैं।"


राज धीरे-धीरे कदम। बढ़ाता हुआ चला जा रहा था। परी से मिलने की चाह इतनी बलवती हो उठी थी कि वो ये भी भूल गया कि वो यहां क्या करने आया है फिर झेंपते हुए सोचा हां हां उसे बुलाना है कल कोठी पर ।वह जब उसके घर के दरवाजे के पास पहुंचा और दरवाजा खटखटाने ही वाला था कि एक आदमी और एक औरत के वार्तालाप ने उसका ध्यान भंग कर दिया ।वह अपनी औरत से कह रहा था,



"भाग्यवान ये अपने साथ क्या हो रहा है ।हमें तो थोड़ी सी ऐक्टिंग करने के पैसे देने वाले थे भूषण प्रसाद जी ,परी को चंद्रिका बनकर राज बाबू को डराना ही तो था ।भूषण प्रसाद जी ही तो वो कपड़े और आभूषण अपनी परी को दे गये थे ताकि राज इन सब चीजों से डरकर भाग जाए और वो सारी जमीन जायदाद पर ऐश कर सके ।वो इधर आने की सोचें भी नहीं और भूषण प्रसाद जी मनमाने तरीके से पैसे खर्च कर सके ।पर लगता हैं हमारा ही वार हम पर उल्टा पड़ गया है लगता है ककड़ी से बीज भारी हो गया है ।ये तो वास्तव में पुनर्जन्म का मामला हो गया लगता है । वरना हमारी परी को इस तरह एक्टिंग करने की जरूरत ही नहीं जब तक राज बाबू सामने ना हो पर ये तो वास्तव में ही पिछ्ले जन्म की चंद्रिका है।"


राज का माथा घुमने लगा ।इसका मतलब अंकल ने मेरे साथ चाल चली थी मेरा पैसा हड़पने के लिए।ओहहह पिताजी आप ने मुझे किसके हवाले कर दिया।

पैसा होती ही ऐसी चीज है अच्छे अच्छे का ईमान डगमगाने लगता है।


कहानी अभी जारी है………………


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